Saturday, August 21, 2010

पुनः संगठन

जिन महानुभावों को मैं पूजनीय दृष्‍टि से देखता था, उन्हीं ने अपनी इच्छा प्रकट की कि मैं क्रान्तिकारी दल का पुनः संगठन करूं । गत जीवन के अनुभव से मेरा हृदय अत्यंत दुखित था । मेरा साहस न देखकर इन लोगों ने बहुत उत्साहित किया और कहा कि हम आपको केवल निरीक्षण का कार्य देंगे, बाकी सब कार्य स्वयं करेंगे । कुछ मनुष्य हमने जुटा लिए हैं, धन की कमी न होगी, आदि । मान्य पुरुषों की प्रवृत्ति देखकर मैंने भी स्वीकृति दे दी । मेरे पास जो अस्‍त्र-शस्‍त्र थे, मैंने दिए । जो दल उन्होंने एकत्रित किया था, उसके नेता से मुझे मिलाया । उसकी वीरता की बड़ी प्रशंसा की । वह एक अशिक्षित ग्रामीण पुरुष था । मेरी समझ में आ गया कि यह बदमाशों का या स्वार्थी जनों का कोई संगठन है । मुझ से उस दल के नेता ने दल का कार्य निरीक्षण करने की प्रार्थना की । दल में कई फौज से आए हुए लड़ाई पर से वापस किए गए व्यक्‍ति भी थे । मुझे इस प्रकार के व्यक्‍तियों से कभी कोई काम न पड़ा था । मैं दो-एक महानुभावों को साथ ले इन लोगों का कार्य देखने के लिए गया ।

थोड़े दिनों बाद इस दल के नेता महाशय एक वेश्या को भी ले आए । उसे रिवाल्वर दिखाया कि यदि कहीं गई तो गोली से मार दी जाएगी । यह समाचार सुन उसी दल के दूसरे सदस्य ने बड़ा क्रोध प्रकाशित किया और मेरे पास खबर भेजने का प्रबन्ध किया । उसी समय एक दूसरा आदमी पकड़ा गया, जो नेता महाशय को जानता था । नेता महाशय रिवाल्वर तथा कुछ सोने के आभूषणों सहित गिरफ्तार हो गए । उनकी वीरता की बड़ी प्रशंसा सुनी थी, जो इस प्रकार प्रकट हुई कि कई आदमियों के नाम पुलिस को बताए और इकबाल कर लिया ! लगभग तीस-चालीस आदमी पकड़े गए ।

एक दूसरा व्यक्‍ति जो बहुत वीर था, पुलिस उसके पीछे पड़ी हुई थी । एक दिन पुलिस कप्‍तान ने सवार तथा तीस-चालीस बन्दूक वाले सिपाही लेकर उनके घर में उसे घेर लिया । उसने छत पर चढ़कर दोनाली कारतूसी बन्दूक से लगभग तीन सौ फायर किए । बन्दूक गरम होकर गल गई । पुलिस वाले समझे कि घर में कई आदमी हैं । सब पुलिस वाले छिपकर आड़ में से सुबह की प्रतीक्षा करने लगे । उसने मौका पाया । मकान के पीछे से कूद पड़ा, एक सिपाही ने देख लिया । उसने सिपाही की नाक पर रिवाल्वर का कुन्दा मारा । सिपाही चिल्लाया । सिपाही के चिल्लाते ही मकान में से एक फायर हुआ । पुलिस वाले समझे मकान ही में है । सिपाही को धोखा हुआ होगा । बस, वह जंगल में निकल गया । अपनी स्‍त्री को एक टोपीदार बन्दूक दे आया था कि यदि चिल्लाहट हो तो एक फायर कर देना । ऐसा ही हुआ । और वह निकल गया । जंगल में जाकर एक दूसरे दल से मिला । जंगल में भी एक समय पुलिस कप्‍तान से सामना हो गया । गोली चली । उसके भी पैर में छर्रे लगे थे । अब यह बड़े साहसी हो गए थे । समझ गए थे कि पुलिस वाले किस प्रकार समय पर आड़ में छिप जाते हैं । इन लोगों का दल छिन्न-भिन्न हो गया था । अतः उन्होंने मेरे पास आश्रय लेना चाहा । मैंने बड़ी कठिनता से अपना पीछा छुड़ाया । तत्पश्‍चात् जंगल में जाकर ये दूसरे दल से मिल गए । वहाँ पर दुराचार के कारण जंगल के नेता ने इन्हें गोली से मार दिया । इस प्रकार सब छिन्न-भिन्न हो गया । जो पकड़े गए उन पर कई डकैतियां चली । किसी को तीस साल, किसी को पचास साल, किसी को बीस साल की सजाएं हुईं । एक बेचारा, जिसका किसी डकैती से कोई सम्बन्ध न था, केवल शत्रुता के कारण फंसा दिया गया । उसे फांसी हो गई और सब प्रकार डकैतियों में सम्मिलित था, जिसके पास डकैती का माल तथा कुछ हथियार पाए गए । पुलिस से गोली भी चली, उसे पहले फांसी की सजा की आज्ञा हुई, पर पैरवी अच्छी हुई, अतएव हाईकोर्ट से फांसी की सजा माफ हो गई, केवल पांच वर्ष की सजा रह गई । जेल वालों से मिलकर उसने डकैतियों में शिनाख्त न होने दी थी । इस प्रकार इस दल की समाप्‍ति हुई । दैवयोग से हमारे अस्‍त्र बच गए । केवल एक ही रिवाल्वर पकड़ा गया ।

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