Sunday, August 8, 2010

शायर

एक शायर आवारा
दिलका मारा बेचारा
यूँ गली गली घुमता था
प्यारके गीत सुनता था।

एक शायर मस्ताना
यहीँ काम था रोजाना
तराने-ईश्क लिखता था
पंछीओं को सुनाता था।

ऐसा था इक दिल
सितरों सा झिलमिल
दियेसा तिलतिल जलता था
अंधेरोंको रोशन करता था

बहारोंकी नज्में
कुदरतके नगमें
जिगरमें समेटे वो रहता था
प्यार बाटने तो जिता था

हसीँ ये कहानी
सुनो मेरी जुबानी
पर किस्मतको शायद
ये मन्जूर न था

हाँ वही वो अजीब सा शायर 
रात को उठ के कोहनियों के बल 
चाँद की ठोडी चूमा करता था 
चाँद से गिर के मर गया है वो 
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है

1 comment:

  1. यहां अंतिम चार लाइनें गुलजारजी से उधार ली है।
    बाकी पूरी रचना मेरी है।
    कभी सुझा तो आखरी कडी बदल दूँगा।

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